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नीमख़ाबी / गोबिन्द प्रसाद

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हुस्न का दरिया
चढ़ता है आँखों में
यादों की नदी उमड़ती है-
अँधेरा है
अकेला हूँ,शहर से दूर
नीमख़ाबी में,कहीं ठिठकता
आसमाँ बेनूर
ख़ामोश रात भी सिसकती
थके क़दम
सुब्हद की जानिब बढ़ती है
यादों की नदी उमड़ती है
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