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अँधेरे में / चंद्र रेखा ढडवाल
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02:24, 21 जुलाई 2010
किताबों के पन्ने भी
रखती रही उनमें
तितलियों के पर
भी
उकेरती रही नखों से
हाशियों में अपने लिए
छापती रही कोरे काग़ज़ पर
दीवार पर /धूप और बारिश पर
ज्यूँ
की
का
त्यूँ
ताकि आने वाली पीढ़ियों को
अँधेरे में इक चिराग़ मिले
</poem>
द्विजेन्द्र द्विज
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