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06:49, 19 जुलाई 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=लीलाधर मंडलोई
|संग्रह=एक बहुत कोमल तान / लीलाधर मंडलोई
}}
<poem>
फिजाओं में खुश्बू का मेला
रंगीनियां बिखरी हुई हैं
बाजार सज-धज के खड़े
हवाओं में नगमे रोशन
बच्चों के लिए आज तो
दिन है मौज मस्ती का
मां कहती है लेकिन
आज घर के बाहर न निकलना
आज त्यौहार का दिन है
आज मां घबराई हुई है
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