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13:20, 19 जुलाई 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रमेश कौशिक
|संग्रह = मैं यहाँ हूँ / रमेश कौशिक
}}
<poem>
वृक्षों में तुम सबसे ऊँचे
कहते हैं ये भोले लोग|
गहराई में जड़े तुम्हारी
छिपी हुई जो
औरों के हिस्से का पानी
चपके-चुपके पी जाती हैं
नहीं जानते भोले लोग ?
</poem>