{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार= शास्त्री नित्यगोपाल कटारे |संग्रह=}}{{KKCatKavita}}<Poem> धन्य -धन्य हे धरती माता तुमसे ही जग जीवन पाता।.पाता । धन्य -धन्य हे धरती माता ।। पृथिवी धरणी अवनि भू धरा भूमि रत्नगर्भा वसुन्धरा गन्धवती क्षिति शस्य श्यामला जननी विविध नाम विख्याता।।विख्याता । धन्य -धन्य हे धरती माता ।। अन्न पुष्प फल वृक्ष मनोहर सरित सरोवर सागर निर्झर स्वर्ग छोड़ करके ईश्वर भी तेरी ही गोदी में आता।।आता । धन्य -धन्य हे धरती माता ।। जल पावक समीर आकाशा गन्ध रूप रस शब्द स्पर्शा सब पदार्थ तेरे आँचल में जो जन जो चाहे पा जाता।जाता । धन्य -धन्य हे धरती माता ।।</poem>