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बरखा--गीत / मनोज श्रीवास्तव
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10:43, 21 जुलाई 2010
आंचल-पट पर दृश्य जगत के,
अमित कामिनी छल-छल छलके;
वसन जो
उघारे
उघरे
हिय ललचाए,
ले अंगड़ाई सब अलसाए;
स्निग्ध बदन को नज़र जो छुए,
Dr. Manoj Srivastav
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