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द्वितीय अंक / भाग 2 / रामधारी सिंह "दिनकर"
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12:19, 26 जुलाई 2010
प्राणेश्वरी! मिलन-सुख को, नित होकर संग वरें हम,
मधुमय हरियाले निकुंज मॅ आजीवन विचरॅ हम”
'''औशीनरी''' आजीवन वे साथ रहेंगे? तो अब क्या करना है?
जीते जी यह मरण झेलने से अच्छा मरना है
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