1,400 bytes added,
06:50, 4 अगस्त 2010 kKRachna
|रचनाकार=अशोक लव
|संग्रह =लड़कियाँ छूना चाहती हैं आसमान
}}
<poem>
नन्ही गिलहरियाँ
पेड़ों से उतरकर
आ जाती हैं नीचे
उठा लेती हैं
छोटी छोटी उँगलियों से
बिखरे दाने
तुक-तुक काटती खाती हैं
टुकर-टुकर ताकती हैं
लजा जाती है
उनकी चंचलता के समक्ष
कौंधती बिजलियाँ
झाड़ियों में दुबकी बिल्ली
झट से झपटती है
चट से चढ़ जाती है पेड़ों पर गिलहरियाँ
खूब चिढ़ाती हैं
खिसियाई बिल्ली
गर्दन नीचे किये खिसक जाती है
गिलहरियों कि ओर बढ़ा देता हूँ
मित्रता का हाथ
उड़ेल देना चाहता हूँ
सम्पूरण स्नेह
बहुत भली होती हैं गिलहरियाँ
पास आकर भाग जाती हैं गिलहरियाँ
</poem>