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गिलहरियाँ / अशोक लव
Kavita Kosh से
नन्ही गिलहरियाँ
पेड़ों से उतरकर
आ जाती हैं नीचे
उठा लेती हैं
छोटी छोटी उँगलियों से
बिखरे दाने
तुक-तुक काटती खाती हैं
टुकर-टुकर ताकती हैं
लजा जाती है
उनकी चंचलता के समक्ष
कौंधती बिजलियाँ
झाड़ियों में दुबकी बिल्ली
झट से झपटती है
चट से चढ़ जाती है पेड़ों पर गिलहरियाँ
ख़ूब चिढ़ाती हैं
खिसियाई बिल्ली
गर्दन नीचे किए खिसक जाती है
गिलहरियों की ओर बढ़ा देता हूँ
मित्रता का हाथ
उड़ेल देना चाहता हूँ
सम्पूर्ण स्नेह
बहुत भली होती हैं गिलहरियाँ
पास आकर भाग जाती हैं गिलहरियाँ