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09:09, 15 अगस्त 2010 {{KKGlobal}}
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रचनाकार=सर्वत एम जमाल
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<poem>
अब मगर का भय नहीं है
कहीं कुछ संशय नहीं है
हर नदी हर ताल में बस
केकड़े ही केकड़े हैं
आप बाहर क्यों खड़े हैं?
......कल्पना से आकलन तक,
......लोग जा पहुंचे गगन तक
.....और हम सदियों पुरानी
......दास्तानों पर अडे हैं।
............मजहबी बीमारियों में
............समर की तैयारियों में
............ध्वंस की पकती फसल में
............सब बिजूका से गडे हैं।
..................... पथ सभी अवरुद्ध जैसे
.....................कुल विधर्मी युद्ध जैसे
..................आज घर ही में पितामह
.................बाण शैया पर पडे हैं॥ <poem/>