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रचनाकार=सर्वत एम जमाल
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<poem>
कुछ देर बाद आग तो कमज़ोर पड़ गयी

लेकिन किसी के वास्ते दुनिया उजड़ गयी


मंहगू उधेड़बुन में है, रोये कि खुश रहे

बेटी ज़मींदार की आंखों में गड़ गयी


यह हादसा नया तो नहीं था, न जाने क्यों

इस बार नीच कौम हवेली पे अड़ गयी


हालाँकि लोग झुक के क़दम चूम लेते हैं

मैंने भी करना चाहा था, गर्दन अकड़ गयी


मन्दिर में आरती के समय खून हो गया

शायद किसी अछूत से थाली रगड़ गयी<poem/>