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11:40, 5 सितम्बर 2010 {{KKGlobal}}
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रचनाकार=सर्वत एम जमाल
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<poem>
वो जिनका था इन्तिज़ार, आए
मगर हवा पर सवार आए
जब आइनों से न पार पाया
सब अपने चेहरे उतर आए
हम एक नारे पे जी रहे हैं
बहार आए, सुधार आए
मिटा न पाया कोई अँधेरा
बडे बडे होशियार आए
घुटन से बचना भी है मुसीबत
हवा चले तो बुखार आए
अब अपनी आंखों को बंद कर लो
दिमाग को कुछ करार आए<poem/>