गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
कायान्तरण / निकलाई ज़बालोत्स्की
3 bytes added
,
08:46, 10 सितम्बर 2010
यदि दृष्टि प्राप्त हो जाती मेरे विवेक को
कब्रों
क़ब्रों
के बीच मेरे विवेक को दिखाई दे जाता मैं
गहराई में लेटा हुआ,
वह मुझ स्वयं को दिखाता
अनिल जनविजय
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,824
edits