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कायान्तरण / निकलाई ज़बालोत्स्की
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14:18, 13 सितम्बर 2010
जैसे बजता हुआ ऑर्गन, बिगुलों का समुद्र और पियानो
जो न ख़ुशियों में मरता है न तूफ़ानों में ।
और जो मैं था वह संभव है पुनः
अनिल जनविजय
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