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फिर आज खड़े हैं सब के सब / सर्वत एम जमाल
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फिर आज खड़े हैं सब के सब
सरकार! अड़े हैं सब के सब
बुनियाद मिले तो महलों की
गहरे ही गड़े हैं सब के सब
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द्विजेन्द्र द्विज
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