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मर जाते हैं कुछ बेचारे क्या कीजे / रविकांत अनमोल
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07:46, 25 सितम्बर 2010
शायर की आँखों में आग न पानी है
प्यासे हैं हम नदी किनारे क्या कीजे
ग़ैरों ने हर बार हमारा साथ दिया
जब हारे अपनों से हारे क्या कीजे
</poem>
Anmolsaab
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