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मर जाते हैं कुछ बेचारे क्या कीजे / रविकांत अनमोल
Kavita Kosh से
उनसे मिलते हैं ग़म सारे क्या कीजे
फिर भी वो लगते हैं प्यारे क्या कीजे
सर ढकने को छत मिलती तो अच्छा था
किस्मत में हैं चाँद सितारे क्या कीजे
टूटे सपने अंधी आँखों में लेकर
मर जाते हैं कुछ बेचारे क्या कीजे
जिन लोगों ने दुनिया की ख़ातिर सोचा
वो फिरते हैं मारे मारे क्या कीजे
या तो वो बहरे हैं जिनको सुनना था
या गूँगे हैं गीत हमारे क्या कीजे
शायर की आँखों में आग न पानी है
प्यासे हैं हम नदी किनारे क्या कीजे
ग़ैरों ने हर बार हमारा साथ दिया
जब हारे अपनों से हारे क्या कीजे