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एक ग़ज़ल है बनने को / गौतम राजरिशी
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07:04, 28 सितम्बर 2010
पूरा चाँद जो मुस्काए
सागर तड़पे उठने को
''{द्विमासिक सुख़नवर, जनवरी-फरवरी,2010}''
</poem>
Gautam rajrishi
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