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08:17, 29 सितम्बर 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=लीलाधर मंडलोई
|संग्रह=लिखे में दुक्ख / लीलाधर मंडलोई
}}
<poem>
यह चावल मोटा है
इसके पकने के साथ
पानी पकता हुआ
सफेद हो उठेगा
आप इसे फेंक देंगे यकीनन
देखो पिछवाड़े की झोंपड़ी की सिम्त
इसे पीकर निकल रहा है
आपके नौकर का बेटा
बस्ता उठाये स्कूल की तरफ