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{{KKRachna
|रचनाकार=रामनरेश त्रिपाठी
}}
{{KKCatKavita‎}}<poem>एक दिन मोहन प्रभात ही पधारे, उन्हेंदेख फूल उठे हाथ-पांव उपवन के।के ।
खोल-खोल द्वार फूल घर से निकल आए,
देख के लुटाए निज कोष सुबरन के॥के ।। 
वैसी छवि और कहीं खोजने सुगंध उडी,
पाई न, लजा के रही बाहर भवन के।के ।
मारे अचरज के खुले थे सो खुले ही रहे,
तब से मुंदे न मुख चकित सुमन के॥के ।।
</poem>
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