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खुशबू {{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=उदयप्रताप सिंह}}{{KKCatKavita}}<poem>ख़ुशबू नहीं प्यार की महकी जिनके सोच-विचारों में । 
नागफनी की चुभन मिली उनके दैनिक व्यवहारों में ।
 
तू पतझर के पीले पत्तों पर पग धरते डरता है
 
लोग सफलता खोज चुके हैं लाशों के अंबारों में ।
 
महलों के रहने वाले कुछ दूरी रखकर मिलते हैं
 पल -भर में घुलमिल घुल-मिल जाते हैं बंजारे बंजारों में । 
औरत ही माँ, बहन, आत्मजा, पत्नी और प्रेमिका है
 बदली नज़रों से पड़ता है, कितना फर्क नजारों फ़र्क नज़ारों में । 
अगर उजाला दे न सका तू ‘उदय’ अंधेरी बस्ती को
 क्या होगा यदि लिख भी गया कल नाम तेरा फनकारों फ़नकारों में ।</poem>
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