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17:02, 21 अक्टूबर 2010 {{KKGlobal}}
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।रचनाकार=मनोज भावुक
।संग्रह
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<poem>
देखलीं जे बइठि के दरिया किनारे
डूबके देखला प लागल भिन्न, यारे
घर के कीमत का हवे, ऊहे बताई
जे रहत फुटपाथ पर लँगटे-उघारे
ना परे मन घर कबो बबुआ के भलहीं
रोज बुढ़िया भोर में कउवा उचारे
बस कहे के हम आ ऊ साथ रहीले
साथ का, जब पड़ गइल मन में दरारे
ख्वाब में भी हम कबो सोचले ना होखब
वक्त ले जाई कबो ओहू दुआरे
</poem>