1,001 bytes added,
16:27, 28 अक्टूबर 2010
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मनोज भावुक
}}
[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
दरिया के बीच बइठ के कागज के नाव में
का-का करत बा आदमी अपना बचाव में
कान्हा प अपना बोझ उठवलो के बावजूद
हरदम रहल देवाल छते का दबाव में
कहहीं के बाटे देश ई गाँवन के हऽ मगर
खोजलो प गाँव ना मिली अब कवनो भाव में
चेहरा पढ़े के लूर जो हमरा भइल रहित
अइतीं ना बाते- बात प अतना तनाव में
लागत बा ऊ मशीन के साथे भईल मशीन
तबहीं त, यार, आज ले लवटल ना गाँव में
<poem>