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दरिया के बीच बइठ के कागज के नाव में / मनोज भावुक

दरिया के बीच बइठ के कागज के नाव में
का-का करत बा आदमी अपना बचाव में

कान्हा प अपना बोझ उठवलो के बावजूद
हरदम रहल देवाल छते का दबाव में

कहहीं के बाटे देश ई गाँवन के हऽ मगर
खोजलो प गाँव ना मिली अब कवनो भाव में

चेहरा पढ़े के लूर जो हमरा भइल रहित
अइतीं ना बाते- बात प अतना तनाव में

लागत बा ऊ मशीन के साथे भईल मशीन
तबहीं त, यार, आज ले लवटल ना गाँव में