{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=सत्यनारायण सोनी |संग्रह=}}{{KKCatKavita}}<poemPoem>गूगल अर्थ पर
गाँव खोजकर
बड़ी खुश ख़ुश हुई बिटियाखिल गई बांछें बाँछें
और एक ही किलक ने उसकी
बुला लिया
रसोईघर में आटा गूंधती मां को।गूँधती माँ को ।लिथड़े हाथों मां माँ ने उसकी
देखा बड़े कौतूहल से
पूरा का पूरा गाँव।गाँव ।
गली, तालाब, स्कूल अपना मौहल्ला और
देख लिया घर भी अपना।अपना ।
बोली बिटिया-
इस पर दुनिया का हर गाँव,
गली, बाजारबाज़ार, दरख्तदरख़्त, खेत, समुद्रसब दिख जाता है साफसाफ़-साफ।साफ़ ।
बड़ी जिज्ञासा और उमंग भर दिल में अपने
पूछा उसकी मां माँ ने-
नानी का गाँव, घर भी दिखला देगी?
माथापच्ची करते-करते
खोज निकाला जब बिटिया ने
तो हर्ष का पार नहीं रहा और
बैठ गई निकट ही खाट पर,
गड़ा दीं नजरेंनज़रेंकम्प्यूटर स्क्रीन पर।पर ।
यह बस-अड्डा, यह गली, यह चौगान
और चौगान में
इस दरख्त दरख़्त के पास वाला
बड़ा-सा यह घर.....
देर तक निहारती रही बिटिया की मांमाँ
फिर टपक पड़ी दो बूँद
आँखों से उसकेउसकी,
जिनमें अब तक थी
एक सुनहरी चमक।चमक ।
नानी के घर में होती
काश तेरी नानी भी पर...
रुंध गया गला और कह पाई
बस एक कहावत अपनी भाषा में
सुना था जिसे कभी मां माँ से अपनी-
'सासू बिना किस्यो सासरो
अर मां माँ बिना किस्यो पी'र।र'।
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