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दिन अधमरा देखने / रमेश रंजक
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15:01, 5 नवम्बर 2010
कितनी भीड़ उतर आई
मुश्किल से साँवली सड़क की
देह
नजर
नज़र
आई ।
कल पर काम धकेल आज की
चुटकुले बिखरे घुँघराले
पाँव, पंख हो गए
थकन की
जंजीरों
ज़ंजीरों
वाले
गंध पसीने की पथ भर
बतियाती घर आई
</poem>
अनिल जनविजय
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