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ग़ज़लों पे कर न पाएँगे थोड़ा भी गौर क्या / पुरुषोत्तम 'यक़ीन'
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12:55, 7 नवम्बर 2010
आख़िर किसी के सोच पे रक्खूँ मैं ज़ोर क्या
कर डाला क़त्ल बाप को भाई से
लट्ठ्मार
लट्ठमार
बीवी जला के मार दी, आया है दौर क्या
द्विजेन्द्र द्विज
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