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दस दोहे (31-40) / चंद्रसिंह बिरकाली
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08:22, 19 नवम्बर 2010
शीघ्र ही उमड़-घुमड़ कर घटा मरूधरा पर छा गई। मधुर गर्जन सुना कर इसने परदेस गये हुओं को भी लौटा लिया है।
ऊगत नाख्या माछला छिपतां नाखी मोग।
सूरज तकड़ो तापियो कर विरखा संजोग।। 33।।
आशिष पुरोहित
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