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15:08, 20 नवम्बर 2010 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=नीरज गोस्वामी
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<poem>
झूम कर आई घटा घनघोर है
डर रहा हूँ घर मेरा कमज़ोर है
मेघ छाएँ तो मगन हो नाचता
आज के इन्सां से बेहतर मोर है
चल दिया करते हैं बुजदिल उस तरफ
रुख़ हवाओं का जिधर की ओर है
फ़ासलों से क्यों डरें हम जब तलक
दरमियाँ यादों की पुख़्ता डोर है
जिंदगी में आप आये इस तरह
ज्यूँ अमावस बाद आती भोर है
इस जहाँ में तुम अकेले ही नहीं
हर किसी के दिल बसा इक चोर है
बात नज़रों से ही होती है मियाँ
जो ज़बाँ से हो वो 'नीरज' शोर है
</poem>