{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=संजय आचार्य वरुण |संग्रह=}}{{KKCatKavita}}<poemPoem>मुझसे कह देना
जब उजास की बात करो तो
मुझ से कह देना
जब धरती पर गंगाजल -सीकिरणें उतरे उतरें आकर
सारा कल्मष धुल जाता है
ताप सूर्य का पाकर
पल-पल तम को हरना
अंधियारे से लडना लड़ना हो तो
मुझसे कह देना
जब काया का चित्र उकेरो
'''मुझसे कह देना'''
जिसने अपने भीतर-भीतर
खुद ख़ुद को ही ललकाराखुद ख़ुद को किया पराजित जिसने
उससे ये जग हारा
मुझसे कह देना
जीवन की बारहखडी बांचीबारहखड़ी बाँचीशब्द नहीं घड घड़ पाया
जितना-जितना भरा स्वयं को
उतना खाली पाया
अर्थ उम्र का मिल जा जाए तो
मुझसे कह देना
एक किनारे सत्य खडा खड़ा है
एक किनारे मेला
बीच में है इस यह दुनिया
आता जाता रेला
चलना हो उस पार अगर तो
मुझसे कह देना।देना ।
</poem>