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दुख तो गाँव-मुहल्ले के भी हरते आए बाबूजी / ओमप्रकाश यती
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15:04, 22 नवम्बर 2010
पूरे जीवन कोट–कचहरी करते आए बाबूजी।
रोज़ वसूली कोई न कोई,खाद कभी तो बीज कभी
Omprakash yati
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