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13:12, 24 नवम्बर 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार= मनीष मिश्र
|संग्रह=
}}
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<poem>
मेरी बेटी
जमा करती है आवाज़ें
और बनाती है
एक तुतलाता, लडख़ड़ाता-सा शब्द।
शब्द देर तक भटकता है
अर्थ की बेमानी तलाश में
और फिर बिखर जाता है
आवाज में।
</poem>