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बेटी-२ / मनीष मिश्र

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मेरी बेटी
जमा करती है आवाज़ें
और बनाती है
एक तुतलाता, लडख़ड़ाता-सा शब्द।
शब्द देर तक भटकता है
अर्थ की बेमानी तलाश में
और फिर बिखर जाता है
आवाज में।