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फिर बेले में कलियाँ आईं/ सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
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18:11, 28 नवम्बर 2010
पात-पात में साँसें छाईं ।
आमों की सुगन्ध से खिंच कर
वैदेशिक जन आए हैं घर,
बन्दनवार बँधे हैं सुन्दर,
सरिताएँ उमड़ीं, उतराईं ।
</poem>
अनिल जनविजय
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