तुम्हारी नियति / शरद कोकास

आग आग है
पेट में जली तो कहलाई भूख
दिमाग़ में पली तो विद्रोह
आँखों से बरसी तो चिंगारी
होंठों से निकली तो गाली
तुमने छीनी रोटी
जिस्म पर चढ़ाया मुलम्मा
कवच पहने
कान बन्द किये
कोशिश की
आग न पहुँचे तुम तक
मगर आग आग है
कब रुकी
मशानी बनी
जले कवच, पिघला मुलम्मा
आग में अब पकेगी रोटी
सोने से दमकेंगे चेहरे हमारे
तुम्हारी नियति?

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