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व्यर्थता / शलभ शीराम सिंह

कंधे पर रखा हाथ
मन को न छू रहा हो अगर
व्यर्थ है।

चेहरे पर टिकी निगाह
आत्मा को न देख रही हो अगर
व्यर्थ है।

आलिंगनबद्ध देह
बोध की सीमा न लाँघ रही हो अगर
व्यर्थ है।


रचनाकाल : 1991 विदिशा