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शकुन्तला / अध्याय 21 / दामोदर लालदास

सदैव हो फेरि एतै सुहागिनी
शकुन्तला-तुल्य महा पतिव्रता।
जनीक अद्यापि प्रसिद्ध विश्वमे
प्रभामयी प्रीति, सुबु़द्धि निर्मला।।

दयावती हे वरदे! करू कृपा
विनोद-वीणा कर-कुंज धारणी।
सदैव ई मंगल-पूर्ण-पुस्तिका
समोद हो मंगल-कार्य-कारिणी।।

इति शुभम्।