सुभ सीतल सौरभ सों सनि मन्द, बयारि बहै मन भावनी है।
जल ताल सरोवर स्वच्छ खिली, कुमुदावलि सोभा बढ़ावनी है॥
बरसावत सी घन प्रेम सुधा, निसि सारद सोक नसावनी है।
चलिए मिलिये बृजचन्द अली, यह चाँदनी चारु सुहावनी है॥
सुभ सीतल सौरभ सों सनि मन्द, बयारि बहै मन भावनी है।
जल ताल सरोवर स्वच्छ खिली, कुमुदावलि सोभा बढ़ावनी है॥
बरसावत सी घन प्रेम सुधा, निसि सारद सोक नसावनी है।
चलिए मिलिये बृजचन्द अली, यह चाँदनी चारु सुहावनी है॥