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शिकायत पर / केदारनाथ अग्रवाल

शिकायत पर
शिकायत है
चिड़िया को मुझसे
कि उसका घोंसला
हटा दिया मैंने
कमरे से;
बेघरबार हो गई
वह
भरी बरसात में।

शिकायत पर
शिकायत है
मुझको चिड़िया से
कि न बनाया
उसने मेरे दिल में
अपना घोंसला,
बेघरबार होने के बाद;
संग-साथ में
चहकने
और बच्चों के साथ
फुर्र-फुदक
करने के लिए।

शिकायत पर
शिकायत है
बादल को मुझसे
कि न लिखी मैंने
उस पर
एक कविता,
जब कि उसने
प्यार-पर-प्यार
बरसाया
और
जी भर नहलाया
मुझे।

शिकायत पर
शिकायत है
मुझको बादल से
कि न हुआ
उसका पानी
शब्दों का रत्नहार-पानी,
दिग्गजों के कंठ से
झूलता
झलमल झलकता
इंद्रधनुषी-पानी।

शिकायत पर
शिकायत है
बिजली को मुझसे
कि न हुआ घायल मैं
उसके कटाक्ष को
किसी रम्भा का
कटाक्ष समझकर
बल्कि समझा मैंने उसे
अँधेरे में बनी-
मिट गई
प्रकाश की
क्षणभंगुर दरार।

शिकायत पर
शिकायत है
मुझको बिजली से
कि बंद हो गई बारंबार
उसकी क्षणिक क्षीण दरार;
दैत्याकार
होता गया
अधम अंधकार;
दुःस्वप्न में
चौंक-चौंक पड़ा
मैं और मेरा संसार।

रचनाकाल: ०७-०७-१९७८