शीर्ष आसन
कर रहे हैं दिन
ज़रा बीमार-से हैं !
कभी हिलते
कभी डुलते
बना स्कन्ध स्तम्भक सरीखे
अब सधेगी भूख
वातज रोग विनशें
कुम्भकादि फ़ायदे होंगे अदीखे,
सीखतर यों
डर रहे हैं दिन
लगे दीवार से हैं !
भुजाओं पर
जमाए सर
खड़े आकाश पैरों पर उठाए
अब दलिद्दर दूर होंगे
उम्र-भर के
लौट जाएगा बुढ़ापा दुम दबाए,
शक्ति भीतर
भर रहे हैं दिन
उठे मीनार-से हैं !
23-5-1976