हमारे शब्द
श्रम से कमाए गए
यूँ न किए जाएंगे खर्च
क्रूरता और चालाकी के खेल ज़ारी रखने के लिए
शब्द हमारे मौन के साक्षी
यूँ न होंगे उपयुक्त
कि करें वे नष्ट दूसरों के एकान्त और निजता
वे लाए जाएंगे कविता में उन्हीं रास्तों
क्षत-विक्षत होना पड़े चाहे उन्हें जितना
जिधर चला रहे हैं ताकतवर नए-नए युद्ध