(राग तिलक कामोद-तीन ताल)
संजय बोले-’नृपति ! आपका उन्हें सुनानेको संदेश।
बड़े विनयसे मैंने उसके अन्तःपुरमें किया प्रवेश॥
चकित दृष्टिस्न्से श्रीकृञ्ष्णार्जुनका देखा जो प्रेम अनन्त।
मैंने समझ लिया, निश्चय ही होगा अब कुञ्रुकुञ्लका अन्त॥
जिन अर्जुनपर अखिल-शक्तिञ्धर प्रभु रखते हैं इतना प्रेम।
उनको कौन जीत सकता है, कौन बचा सकता निज क्षेम॥
अर्जुनने प्रभुके दोनों चरणोंको रखकर अपनी गोद।
उनको नित्य बनाकर अपने, बने धन्य जीवन अति मोद॥
एक चरण अर्जुनका राज रहा रानी कृञ्ष्णाकी क्रञेड।
र?खा गोद सत्यभामाने चरण दूसरा कर प्रिय होड॥
उभय महापुरुषोंको ऐसे एक दिव्य आसनपर देख।
सोच लिया अति दारुण है दुर्योधनके ललाटके लेख॥