संदर्भ:
1. नट नामक एक जंगली जाति की स्त्रियाँ जो नाचने, गाने और वेश्यावृत्ति उठाने से यहाँ एक प्रकार मध्यम श्रेणी की रण्डी वा नर्तकी वारवधू बन गई हैं, जिनकी कजली गाने में कुछ विशेषता है और जिसका कुछ वर्णन इस पुस्तक के अंत में 'कजली की कजली' में भी हुआ है।
2. नर्तकी, वेश्या वा घुघुरुबन्द पतुरिया।
3. यथार्थ तुक संयुक्त टेक "सामाजिक संगीत" प्रकरण में देखो।
4. गवनहारिन यहाँ अधम श्रेणी की वेश्याओं को कहते हैं, जो प्रायः नफ़ीरी और दुक्कड़ अर्थात् रोशन चौकी पर विशेषतः बधावे आदि के साथ सड़क पर गाती चलती हैं और उनके गाने की लय सबसे विलक्षण और अलग होती है।
5. रुपये से भरी टाट की थैली।
6. दो प्रेमी व तमाशबीनों का नाचती हुई रण्डी को अधिक-अधिक रुपया देने से एक दूसरे को परास्त करना।
7. उज्ज्वल वस्त्र पहिनकर बिना रुपया दिए नाच देखने वालों पर सफर्दा और सामाजियों की बोली, ठोली।
8. मुहल्लों के नाम जहाँ रात को मेला जमता है। शोक! कि अब यह रात का मेला नाम मात्र को रह गया।
9. चौक व उन मुहल्लों के नाम जहाँ वेश्याएँ रहती हैं।
10. अर्थात् सावन के प्रत्येक मंगलवार को यह पहाड़ी मेला होता है।