Last modified on 23 जुलाई 2016, at 00:00

सखी को सिच्छा / रसलीन

आवन भयो है रसलीन मनभावन को,
चावन सों चित माँह चोप उपजाइए।
बसन मलीन दुख दूर कै बिमल पट
मोद तन मन मांह आछी भाँति छाइए।
ऐसो दिन पाइ क्यों रही है सकुचाइ बात
हित की बनाइ अब क्यों न चित ल्याइए।
जैसै आँसुवन सिवकुच जलसाई कीन्हैं,
तैसै अब हँसि हँसि फूलन चढ़ाइए॥60॥