हरि कौतुक देखी है आन इतै जग माँह कहावत हो रसिआ।
तुमसे ठहराव की नेक नहीं यह कान्हर कान्ह करौ बतिआ।
पग सेवत ही नित ही रहिहौ तजि के अभिमान भरो जो हिआ।
तिहि बैठि झरोकहि मैं झमकै जिमि कातिक मास अकास दिआ॥59॥
हरि कौतुक देखी है आन इतै जग माँह कहावत हो रसिआ।
तुमसे ठहराव की नेक नहीं यह कान्हर कान्ह करौ बतिआ।
पग सेवत ही नित ही रहिहौ तजि के अभिमान भरो जो हिआ।
तिहि बैठि झरोकहि मैं झमकै जिमि कातिक मास अकास दिआ॥59॥