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सन्नाटे पर नाज़ नहीं / अश्वनी शर्मा


सन्नाटे पर नाज़ नहीं
क्यों कोई आवाज़ नहीं।

किसने कतरे पर पंछी के
क्यों कोई परवाज़ नहीं।

आग धधकती हर सीने में
क्यों कोई आगाज़ नहीं।

रेंग-रेंग कर चलने वाला
अपना तो अंदाज़ नहीं।

शहनाई के दीवानों का
रणभेरी तो साज़ नहीं।

दो-दो हाथ वक्त से कर ले
अब ऐसे जांबाज़ नहीं।

दमदारी बीमारी है अब
दम भरते अल्फाज़ नहीं।