सन्नाटे पर नाज़ नहीं
क्यों कोई आवाज़ नहीं।
किसने कतरे पर पंछी के
क्यों कोई परवाज़ नहीं।
आग धधकती हर सीने में
क्यों कोई आगाज़ नहीं।
रेंग-रेंग कर चलने वाला
अपना तो अंदाज़ नहीं।
शहनाई के दीवानों का
रणभेरी तो साज़ नहीं।
दो-दो हाथ वक्त से कर ले
अब ऐसे जांबाज़ नहीं।
दमदारी बीमारी है अब
दम भरते अल्फाज़ नहीं।