Last modified on 22 जून 2016, at 04:13

सपना सगुन देखी / भवप्रीतानन्द ओझा

सपना सगुन देखी,
हरषी उठली सखी,
दूती सें कहथी बतिया;
फरकी उठलोॅ बाम अँखिया,
आजु रे आवतो कालिया।

उरेखी बांधली जूरा,
लगावली पानक बीरा,
बिछावली झारी सेजिया,
जागि रहली धनी रतिया;
आजु रे आवतो कालिया।

श्याम शबद सुनी,
चमकी उठली धनी,
मिलली आगू लागिया;
प्रेमें छल-छल चारी अँखिया;
आजु रे आवलोॅ कालिया।

अंग परश सुखें मुरछिता पति बुकें,
मुख सें नें फुटे बतिया;
भवप्रीता भावे वनमलिया;
आजु रे आवलोॅ कालिया।