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सब ले इंसाफ हो / जयराम दरवेशपुरी

सब के मंगल कामना
ई नया साल के
दूर कर दा सब मिल जुल
अन्हर जाल के

कलमश सब धो दा
चल पावन गंगा में
कसम खा सब चढ़
कंचनजंघा में
दिव्य ज्ञान एकता के
ले मशाल के

जागऽ सब गाँव शहर
जगवे समइया
धो दा मन मैल सभे
देशवा के भइया
समय देख रूप धरऽ
महाकाल के

अपनावऽ मिल्लत
दुश्मनी साफ हो
फहरे परचम
सब ले इंसाफ हो
भेद खोलऽ
खूंखार बाघ छाल के।