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सरद ऋतु मध्य चाँदनी बरनन / रसलीन

1.

कोऊ कहै धोइबे को अंक के मयंक आज,
बिधि तें बिनै कै जग छीरधि भरायो है।
कोऊ कहै गरब सुधाधर के तोरिबे कों,
बिधा सुधा मध सब लोक अन्हवायो है।
कोऊ कहै पारा कूप वारा रूपवती देख
उत अपनाइ कै जगत छहरायो है।
मेरी जान औषदेस काहू जरी रस ही सो
देस कों बिसय मस चाँदी को दिखायो है॥74॥

2.

उज्जल बसन तन मंजुल सुबास जुत,
मोतिन के भूखनन तारा छबि पाई है।
चंद सो बदन दृग सौहैं रसलीन मृग,
हंसन दरस कै मरीचिका दिखाई है।
ओस के सुमानिक झरत श्रम सेद कन,
मंद मंद सीत बात लावत सुहाई है।
सरद समय के निस चंद्रिका न होइ यह
धरा को छलन कोऊ छरा चली आई है॥75॥

3.

कोउ काँपि काँपि थहरात बूड़िबे को डर,
काहू ढाँपि ढाँपि मुख ओटन कै लीन्हों है।
कोउ धाइ-धाइ कै चढ़त सैल ऊँचे जान,
काहू धाइ धाइ कै निपट पाय दीन्हो है।
इंद्र के प्रलै सों रसलीन प्रान दान दीजै
ना तो सब जनन को जीव जात चीन्हों है।
बेदन तें सुने जग नीरमय ह्वै है बेरि
सो तो आज चंद सब छीरमय कीन्हों है॥76॥

4.

साजि सारी स्याम रंग भूषन पहिरि संग,
नखत कै अंग अंग अधिक सुहाई है।
चाँदनी की चादर सजे हैं ओढ़ि रसलीन,
सुधाधर बिषै बहु सोभा दरसाई है।
सीरी सीरी बात लावै बार बार समझावै,
मन को मनावै करै प्रेम अधिकाई है।
देसे रूप गुन छाइ देखि मन जान पाइ,
राका रैन माई आज दूती बनि भाई है॥77॥

5.

चोरन तें दिढ़मत चोरी कै छुड़ाइ नित,
साहन के मन अति आनंद बढ़ायो है।
कुलटन सों हित कै रति कै अपिततन,
पतनी के संग पतियन लै मिलायो है।
देख कै अभीत रीति मीत चंद चाँदनी की,
उपमा पुनीत रसलीन चित लायो है।
टारि तमो गुन को सँवारि रजो गुन आज,
दुजराज जग कों सतोगुन पै छायो है॥78॥