Last modified on 2 मार्च 2014, at 01:29

साँझ लौं रह्यौ कैसैं जाय / हनुमानप्रसाद पोद्दार

साँझ लौं रह्यौ कैसैं जाय ?
गाय चरावन ग‌ए हरि बन, चिा अति अकुलाय।
निमिष एक अनेक जुग सम दीर्घ मोहि लखाय॥
छिनहिं-छिन मन होय आतुर, मिलन कौं उडि धाय।
स्याम-दरसन बिना सबहि मसान-सौ दरसाय॥